रविवार, 17 जनवरी 2016

औरत 
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आँखे खुली तो हैं,
फिर भी देखती ही नहीं
भुजाएँ बलवान तो हैं,
फिर भी उठती ही नहीं
शब्द तो बहुत भरे हैं,
ये आवाज़ है की निकलती ही नहीं।

कुछ परेशान सी लगती है,
संस्कृति और समाज
लज़्ज़ा और हया
इन शब्दों से भयभीत सी लगती है।
जांघो को दबाए हुए है,
होंठो को सिये हुए है,
वो जो औरत है
रिश्ते में मेरी बहन लगती है

अरे ! अब आप पूछेंगे नहीं की
मै कौन हूँ ?
पास में चौराहे पे खड़ा
अहिल्या का बुत
देखा ही होगा , आपने क्यों ?

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