काश मै भी लड़का होती ..................
हर बात मुलाकात पर वो कह ही देती थी
की काश मै भी लड़का होती
कोई न फब्तियां कसता
कोई न उरोजों को घूरता
आधा पहनती या पूरा
कोई बात-बात पर न टोकता
काश मै भी लड़का होती.....
मेरी हिफाज़त के लिए
माँ परेशान न होती
चार साल के छोटू को
मेरे साथ बार-बार न भेजती
काश मैं भी लड़का होती .......
लेकिन फिर मैं सोचती हूँ
की आखिर मैं लड़का क्यूँ होती
क्या लड़की होना गुनाह है?
नहीं है
गुनहगार है वो सोच जिसने
समझा है औरत को सिर्फ एक 'सामान'
इस गुनहगार को अब सूली पर चढ़ाना है
इसलिए अब मैं नहीं कहती की
काश मैं लड़का होती
मैं लड़की हूँ और काश
मैं लड़की ही बनूँ ...............
आयुष शुक्ला
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