रविवार, 17 जनवरी 2016


दहेज़ 
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कल रात 
बापू की चारपाई के पास
एक कागज़ मैंने पाया है ...

जिसपे लिखा हिसाब
मुझे कुछ समझ में
न आया है ..

उसमे लिखा था :-
25 हज़ार मामा ने
32 हजार फूफा ने
और 40 हज़ार चाचा ने
भिजवाया है ..

अपनी खाने की खुराक घटा के
छोटू की कॉलेज की पढाई रुकवा के
मकान की कीमत लाला के यहाँ लगा के

1 लाख रुपये
माँ - बापू ने भी जुटाया है

बुआ ने बेड
मौसी ने कलर टीवी
तो अम्मा ने सोने का कंगन बनवाया है
पर अभी पर अभी
मोटर साइकिल का कोई जुगाड़
न लग पाया है ....

इनसे ख़रीदा जायेगा मेरे लिए
मरा प्यार
मेरा मेरा यार , मेरा बाकी का सारा संसार

मेरा हमसफ़र
मेरा पति परमेश्वर ...........  Ayush Shukla


( The image is borrowed from internet. )

औरत 
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आँखे खुली तो हैं,
फिर भी देखती ही नहीं
भुजाएँ बलवान तो हैं,
फिर भी उठती ही नहीं
शब्द तो बहुत भरे हैं,
ये आवाज़ है की निकलती ही नहीं।

कुछ परेशान सी लगती है,
संस्कृति और समाज
लज़्ज़ा और हया
इन शब्दों से भयभीत सी लगती है।
जांघो को दबाए हुए है,
होंठो को सिये हुए है,
वो जो औरत है
रिश्ते में मेरी बहन लगती है

अरे ! अब आप पूछेंगे नहीं की
मै कौन हूँ ?
पास में चौराहे पे खड़ा
अहिल्या का बुत
देखा ही होगा , आपने क्यों ?