एक ख़त अपने दोस्तों, साथियों के नाम
जब रहीम चचा कल्ले में पान दबाए हुए दुकान के सामने से निकलते थे तो बोलते थे
राम राम मिश्र जी क्या हाल है?
और मिश्र जी जवाब देते हुए कहते थे
असलामवालेकुम चचा बस आपकी ही दुवा है।
ये है भारत जिसे मैंने देखा है,जिसको आज़ाद कराने की लड़ाई बिस्मिल और अश्फाक ने साथ लड़ी थी।
आज हमने इसे कहाँ पंहुचा दिया है? ऐसा लगता है की चारो तरफ सिर्फ नफरत फ़ैलाने का ही धंधा हो रहा है। मैं जब कभी सोशल मीडिया पर देखता हूँ तब चिंतित हो जाता हूँ। जिन्होंने कभी बाबरी का विध्वंस नहीं देखा जो शायद उस समय पैदा भी न हुए हो वो नौजवान पीढ़ी तकनीकी का उपयोग भी सिर्फ फिरकापरस्ती एवं वहामपरस्ती फैलाने में कर रही है। इसी सोच के आधार पर हमने विश्वशक्ति बनने का सपना पाला है। सिर्फ इतना ही नहीं किसी शहर में रात को कहीं कोई धार्मिक पोस्टर फाड़े जाने की अफवाह फैलती है सुबह होते होते वहाँ पर लोगो का जमावाड़ा लग जाता है। कहासुनी से शुरु हुई बात मारा पिटी पर आ जाती है। DM, SSP शहर की पूरी ताकत उस दंगे को शांत कराने में झोक दी जाती है। कही आगज़नी तो कही कत्लेआम दिखाई देता है। अगले दिन रात होते होते शहर फ़ौज़ की छावनी बन जाता है।
माँ अपने बच्चे को पानी पिला कर सुला देती है, दूध की दुकान आज बंद है। रोज कमाने खाने वाले बिरजू को आज शायद भूखा ही सोना पड़ेगा क्योकि आज काम पर नहीं जा सका। कोने पर सायकिल का पंचर बनाने वाला इसरार आज इस सोंच में पड़ा हुआ है की कल बीवी की दवाई के लिए पैसे कहाँ से आएंगे।
जब आप पूछेंगे ये सब क्यों .....?
एक ही जवाब
दोस्त मेरे शहर में दंगा हुआ है।
दोस्त ! दंगे तो आज आम हो गए
हम हिन्दू तो आप मुसलमान हो गए
कभी पता करो क्या था उन बच्चों का मज़हब
जो उस रात भरे बाजार अनाथ हो गए ।
मंदिर मस्जिद देखो तो आज भी खड़े है कितनी शान से
जिनके लिए इंसान उस दिन हैवान हो गए ।
1931 को जिस शहर में दंगे को शांत कराते समय गणेश शंकर विद्यार्थी जी शहीद हुए थे उसी शहर में 25 oct 2015 को उनके जन्मदिन से पहले फिर दंगा होता है तो मुझे लगता है की हम अपने शहीदों से कुछ सीख नहीं पाये। हम आज भी वहीँ खड़े है जहाँ 60 साल पहले खड़े थे। आखिर क्यों.....?
हिंदुस्तान की सीमाएँ बाघा अटारी बॉर्डर पर लगे दरवाजों से तय नहीं होती न ही बंगाल और बांग्लादेश की सीमा पर लगे कंटीले तार ये तय करते है की हिंदुस्तान की सीमाएँ कहाँ तक है। हिंदुस्तान की सीमाएँ तय होती है उस एक फ़क़ीर से जिसमे अमेरिका में अपने भाषण की शुरुवात जैसे ही अमेरिका वासी भाइयों एवं बहनो से की पूरा कोलंबस हाल 2 मिनट तक तालियों से गूंजता रहा। हिंदुस्तान की सीमाएँ तय होती है 23 साल के उस नौजवान से जिसने इस वजह से फाँसी स्वीकार कर ली की देश के नौजवानो में क्रांति की लहार दौड़ उठे। हिंदुस्तान की सीमाएँ तय होती है उस शेरशाह से जिसका नाम कैप्टेन विक्रम बत्रा होता है जो टाइगर हिल पर तिरंगा फहराते हुए कहता है की ये दिल मांगे मोर। हिंदुस्तान की सीमाएँ तय होती है वीर अब्दुल हमीद से। हिंदुस्तान की सीमाएँ तय होती है उस मेजर संदीप उन्नीकृष्णन से जो मुम्बई हमले के दौरान बिना बुलेट प्रूफ जैकेट पहने आतंकियों से ये कहते हुए भीड़ जाता है नीचे संभालों ऊपर मैं अकेले देख लूंगा।
दोस्त हिंदुस्तान की सीमाएँ तय होती है उस अब्दुल कलाम से जिनके इंतकाल के समय पूरा देश रोया था।
हिंदुस्तान की सीमाएँ तय होती है आपसे और मुझसे। बस अदम साहब की एक गजल याद आ गयी....
हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िये
अपनी कुरसी के लिए जज्बात को मत छेड़िये
हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है
दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िये
ग़र ग़लतियाँ बाबर की थीं; जुम्मन का घर फिर क्यों जले
ऐसे नाजुक वक्त में हालात को मत छेड़िये
हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ ख़ाँ
मिट गये सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िये
छेड़िये इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के ख़िलाफ़
दोस्त, मेरे मजहबी नग्मात को मत छेड़िये।
-------------------------- -------------आयुष शुक्ला