गुरुवार, 31 मार्च 2016


चलो आज कुछ बोला जाए......................



चलो आज कुछ बोला जाए
संस्कृति सदाचार के चोले को खोला जाए
बगावत न समझियेगा जनाब!
आज दिल है कि आपको आईने से रूबरू कराया जाए।


पापा की गुड़िया
मम्मा की रानी थी
ये वो दौर था उम्र में तब कुछ कच्ची थी
मैं भी जब बच्ची थी।


आँखों में काजल
बालों में फूल लगाती थी
माँ मुझे 
परी जैसे सजाती थी


पर क्या पता था
इंसानों में भी हैवान होते है
मेरे घर में भी कुछ शैतान रहते है


प्यार महोब्बत
चॉकलेट और
खेल खिलौनों
के नाम पर मैं ठगी गयी

बंद कमरों में मेरी चीखें
कई बार दफ़न हुईं


होंठों से होंठ दबाती रही
दर्द पर दर्द सहती रही 
मैं उस दिन फिर मर गयी
इज़्ज़त का हवाला देके
जब मैं शांत कर दी गयी।


पर अब मैं चुप नहीं रहूंगी
समाज का 'मूक ख़िलौना' न बनूँगी
मैं तो अब इसका आइना बनूँगी।

::: आयुष शुक्ला